Saturday, February 2, 2008

अमेरिका में बढ़ रहा है हिंदी का रुतबा


भारत में लोग भले ही समझें कि हिंदी दीन-हीनों की भाषा है, लेकिन सच यह है कि अमेरिका जैसे देश में इस भाषा का प्रचार-प्रसार तेजी से हो रहा है। वहां हिंदी के प्रचार-प्रसार में लगे प्रो. हरमन वान आलफन का कहना है कि भारत में हिंदी के प्रति लोगों का लगाव लगातार कम होता जा रहा है, लेकिन सात समुंदर पार स्थितियां भिन्न है। विश्व के सबसे ताकतवर मुल्क में हिंदी धीमी रफ्तार से ही सही, पर अपना स्थान बना रही है।
प्रो. आलफन के मुताबिक अमेरिका में हिंदी की पढ़ाई 1960 के दशक में ही शुरू हो गई थी। आज वहां के सौ विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। उन्होंने बताया कि हो सकता है इस सिंतबर से अमेरिकी स्कूलों में भी नियमित तौर पर हिंदी की पढ़ाई शुरू हो जाएगी। उन्होंने कहा कि 10 वर्ष पहले तक अमेरिका में केवल 25 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती थी, लेकिन अब 100 से भी अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है।
वह इस बात को स्वीकार करते है कि अमेरिकी शहरों में देवनागरी लिपि में लिखे हुए वाक्य या शब्द नहीं दिखाई पड़ते है। यहां तक कि भारतीय रेस्तरां, होटलों के नाम भी दूसरी लिपियों में लिखे हुए दिखलाई पड़ते है, जबकि अरबी, चीनी, फारसी लिपी पर आपकी नजर सहजता से पड़ जाएगी।
इसके बावजूद प्रो. ऑलफन निराश नहीं हैं। उनका मानना है कि अमेरिका में हिंदी भाषा तरक्की पर है। वह अपनी स्थिति मजबूत कर रही है और इसके सुखद परिणाम भी धीरे-धीरे सामने आ रहे है। मनोरंजन की दुनिया में 'सलाम नमस्ते' नामक हिंदी रेडियो कार्यक्रम भी प्रसारित किया जा रहा है।
हिंदुस्तान में हिंदू-उर्दू के बीच उत्पन्न होने वाली प्रतिस्पर्धा के सवाल पर उन्होंने कहा कि अमेरिका में हिंदी और उर्दू के बीच बड़ी पतली खाई है। भारत में हिंदी की स्थिति पर कुछ कहना मेरे लिए संभव नहीं है। मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि भारत और हिंदी हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
गौरतलब है कि प्रो. आलफन आजकल एक संस्था द्वारा आयोजित छठे अंतरराष्ट्रीय हिंदी उत्सव में भाग लेने दिल्ली आए हुए है।

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